Govardhan puja
Govardhan puja अधिकांश समय गोवर्धन पूजा का दिन diwali पूजा के अगले दिन पड़ता है और इसे उस दिन के रूप में मनाया जाता है जब भगवान कृष्ण ने भगवान इंद्र को हराया था,और गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाया था। कभी-कभी दिवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अंतर भी हो सकता है।
धार्मिक ग्रंथों में कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि के दौरान गोवर्धन पूजा मनाने का सुझाव दिया गया है। प्रतिपदा के प्रारंभ समय के आधार पर, गोवर्धन पूजा का दिन अमावस्या से एक दिन पहले पड़ सकता है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गेहूं, चावल, बेसन से बनी करी और पत्तेदार सब्जियों जैसे अनाज से बना भोजन पकाया जाता है और भगवान श्री कृष्ण जी को भोग लगाया जाता है।
महाराष्ट्र में उसी दिन को बाली प्रतिपदा या बाली पड़वा के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के अवतार वामन की विजय का जश्न मनाता है।राजा बाली पर अत्याचार और उसके बाद बाली को पाताल लोक में धकेलना। ऐसा माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण, इस दिन असुर राजा बलि पाताल लोक से पृथ्वी लोक का भ्रमण करते हैं।
अधिकांश समय गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ मेल खाता है,जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है। प्रतिपदा तिथि के प्रारंभ समय के आधार पर,गोवर्धन पूजा समारोह गुजराती नव वर्ष दिवस से एक दिन पहले किया जा सकता है।
मंगलवार, 14 नवंबर 2023 को गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त –
प्रातः 06:43 बजे से प्रातः 08:52 बजे तक
अवधि – 02 घंटे 09 मिनट
मंगलवार, 14 नवंबर, 2023 को द्युता क्रिडा
प्रतिपदा दिनाक प्रारंभ – 13 नवंबर 2023 को दोपहर 02:56 बजे
प्रतिपदा दिनाक समाप्त – 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02:36 बजे
गोवर्धन पूजा के लिए पंचांग गोवर्धन पूजा पर चौघड़िया मुहूर्त।
गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पूजा में गोधन (गायों) की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा नदी होती पवित्र होती हैं। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गाय माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इस तरह गाय सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है। इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा का भी विधान है।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल(सुबह) तैल-स्नान (तैल लगाकर स्नान) करना चाहिये।
गो, बछड़ों एवं बैलों की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। यदि घर में गाय हो, तो गाय के शरीर पर लाल एवं पीले रंग लगाना चाहिये। गाय के सींग पर तेल व गेरू लगाना चाहिये। फिर उसे घर में बने भोजन का प्रथम अंश खिलाना चाहिये। यदि घर में गाय न हो, तो घर में बने भोजन का अंश घर के बाहर गाय को खिलाना चाहिये।
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इसके बाद गोवर्धन-पूजा (अन्न-कूट-पूजा) करनी चाहिये। इसके लिए जो लोग गोवर्धन पर्वत के पास नहीं हैं, वे गोबर से या भोज्यान्न से गोवर्धन बना लेते हैं। अन्न से बने गोवर्धन को ही अन्न-कूट कहते हैं। उसी को क्रमशः पाद्य-अर्घ्य-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्य-आचमन-ताम्बूल-दक्षिणा समर्पित करते हुए पूजा करते हैं।
इस गोवर्धन-पूजा का अपना विशेष महत्त्व है। प्राकृतिक विपत्तियों से सावधान रहने की सूचना गोवर्धन की कथा से मिलती है। साथ ही गो-माता की महिमा और अन्न ही ब्रह्म है, इसका बोध होता है।
इस दिन दूध और उससे बनी वस्तुओं का उपयोग तो सभी बड़े चाव से करते हैं किन्तु गायों की दुर्दशा की ओर कितनों का ध्यान जाता है! अन्न का आहार कौन नहीं करता, किन्तु उसकी बर्बादी पर ध्यान देनेवाले कम ही लोग हैं। इसी अनाचार के फल-स्वरुप अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, भूकम्प जैसे प्राकृतिक संकटों से मानव-समाज को जूझना पड़ता है। गोवर्धन-पूजा या अन्न-कूट पर्व द्वारा इसीलिए उक्त विषयक समुचित चेतावनी दी जाती है।